गुरु पूर्णिमा पर स्वामी अड़गड़ानंद जी के दर्शन को उमड़ा लाखों का जनसैलाब
गुरु पूर्णिमा महात्म्य पर बोले स्वामी जी के शिष्य
मिर्जापुर ब्यूरो बांकेलाल निषाद "प्रणव"
लौकिक और पारलौकिक जीवनोद्धार का केंद्र उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में प्रकृत की गोंद में स्थित शक्तेषगढ़ आश्रम में पर्वों का महापर्व गुरु पूर्णिमा मानव मात्र का एकमात्र धर्मशास्त्र यथार्थ गीता के प्रणेता तत्व द्रष्टा महापुरुष अनन्त विभूषित विश्व गुरु विश्व गौरव से सम्मानित परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज के शरण शानिध्य में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया । लाखों की संख्या में संत महात्माओं श्रद्धालुओं ने स्वामी जी का दर्शन कर निहाल हुए ।इस अवसर पर स्वामी जी द्वारा रचित यथार्थ गीता समेत अन्य धार्मिक पुस्तकें जैसे अंग क्यों फड़कते है क्या कहते हैं भजन किसका करे आत्मानुभूति एवं जीवनादर्श योगशास्त्रीय प्राणायाम मैं कौन हूं? आदि पुस्तकें भारी छूट पर मिली । प्रशासन और आश्रम की तरफ से व्यवस्था चाक-चौबंद रही प्रसाद वितरण का कार्य लगातार चालू रहा सड़क के चारों तरफ बुक स्टाल लगी हुई थी जिस पर स्वामी जी द्वारा रचित धार्मिक पुस्तकें के अलावा स्वामी जी का लाकेट रूद्राक्ष
फोटोज आदि भारी छूट पर मिल रही थी। स्वामी जी के दर्शन को लेकर लंबी कता दलरें लगी थी भक्तों के लिए पंखे और कूलर की व्यवस्था भी रही जिससे उन्हें दर्शन में कोई असुविधा न हो। फ्री में इमरजेंसी मेडिसिन सुविधा डाक्टर धनंजय सिंह प्रबंध निदेशक यथार्थ नर्सिंग कॉलेज एंड पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट एंड डाक्टर आरडी मेमोरियल चंदौली के दिशा-निर्देशन में चला और डाक्टर कुसुमाकर पूर्व चिकित्सा अधिकारी राबर्ट्सगंज सोनभद्र के दिशा-निर्देशन में होम्योपैथिक उपचार की सुविधा संत महात्माओं श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध रही साथ ही साथ बलिया जनपद के निवासी डाक्टर सिंह के दिशा-निर्देशन में आयुर्वेदिक उपचार भी निशुल्क व्यवस्था की गयी। भक्तों के लिए चारो तरफ शुद्ध पेयजल की व्यवस्था रही। जहां एक तरफ सत्संग हाल में स्वामी जी के दर्शन को भक्त कतारबद्ध होकर दर्शन कर निहाल हो रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ स्वामी जी के शिष्यों द्वारा गीता भवन में सत्संग का आयोजन किया गया था। स्वामी जी के शिष्यों ने गुरु पूर्णिमा के महात्म्य को विस्तार से लाखों श्रद्धालुओं को सत्संग के माध्यम से समझाया। इस अवसर पर सत्संग का संचालन पूज्य श्री लाले महाराज ने किया और सत्संग प्रवचन का कार्य श्री तुलसी महाराज जी श्री चिन्तनमयानंद जी महाराज श्री तानसेन महाराज जी श्री बिल्लू महाराज जी श्री तत्वदर्शी महाराज जी श्री गुलाब महाराज जी श्री बालक दास जी महाराज श्री कृष्णा नंद जी महाराज श्री गिरी महाराज जी श्री सूरदास बाबा बिहार श्री अकेला नंद जी महाराज श्री राजीव बाबा ने किया। इन संत महात्माओं ने ओम् जप सद्गुरु का ध्यान व उनकी सेवा और जब सद्गुरु हृदय से रथी हो जांय परमात्मपर्यंत की दूरी तय होने तक यंत्रवत उनके आदेश पर चलना आदि भक्तों को बताया गया। उन्होंने यथार्थ गीता को बराबर पढ़ते रहने को कहा। इस अवसर पर बीच बीच में देश के कोने कोने से आये कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रतीकात्मक रूप में स्वामी जी का महिमामंडन किया। इस अवसर पर गोरखपुर के कलाकार बरचर आश्रम के अनुराग मिश्रा राजस्थान के सवाई सिंह प्रतापगढ़ के मिश्रा भजन मंडली ने भी अपनी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। भक्तों के लिए इस अवसर पर राजस्थान जयपुर के भक्तों के द्वारा निशुल्क चाय विस्कुट व छोटे बच्चों को दुग्ध आदि की व्यवस्था सूर्य ज्ञान मोंटू मनोज राठौर रवि राम अवतार बजाज कमल अग्रवाल शौरभ निमिचंद ओम चतुर्वेदी मनोज कस्वा आदि के सहयोग से चला
*क्यों मनाई जाती हैं गुरु पूर्णिमा* ?पर स्वामी जी ने बोलते हुए बताया कि गुरु पूर्णिमा गुरु शिष्य परम्परा का एक अनुपम पर्व है।श्री स्वामी जी ने बताया कि गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर प्रत्येक शिष्य श्रीसद्गुरु की कृपा के लिए प्रार्थनाशील रहता है वह उस साधना- विधि को पाना व अपनाना चाहता है, जिससे उसे अपने श्रीसद्गुरु की चेतना का संस्पर्श मिले एवं गुरुतत्व का बोध हो। जीवन के सभी लौकिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए उसे सदगुरुदेव की कृपानुभूतियों का लाभ मिल पाए। शिष्यों की इन सभी चाहतों को पूरा करने के लिए प्राचीन ऋषियों ने सद्गुरु की महिमा का चिंतन, मनन व निदिध्यासन को समर्थ साधन विधि के रूप में बताया था। गुरु की इस महिमा का उपदेश श्रीसद्गुरु भगवान ने शिष्यों को दिया था। फिर इसी को भगवान शंकर ने माता पार्वती को दिया था। बाद में यही सूतजी ने नैमिषारण्य के तीर्थ स्थानों में ऋषि गणों को सुनाई। फिर भगवान व्यास जी ने स्कंदपुराण के उत्तरखंड में इसी प्रसंग का बड़ी भावपूर्ण रीति से वर्णन किया है। शिष्य- साधक हजारों वर्षों से इससे लाभान्वित होते रहे है। गुरुतत्व का बोध करने की यह एक गोपनीय साधन- बिधि है। अनुभवी साधकों का कहना है कि भजन, सुमिरन और ध्यान के साथ सम्यक् विधि से इसका पाठ किया जाय तो शिष्यों को अवश्य ही अपने श्रीसदगुरुदेव का दिव्य संदेश मिलता है। स्वप्न में, ध्यान में या फिर साक्षात् उसे श्रीसद्गुरु की कृपा की अनुभूति होती है। शिष्य के अनुराग व उसकी प्रगाढ़ भक्ति से प्रसन्न होकर श्री सदगुरुदेव उसकी आध्यात्मिक व लौकिक इच्छाओं को पूरा करते हैं। यह कथन केवल काल्पनिक विचार नहीं बल्कि अनेकों साधकों की साधनानुभूति है। हम सब भी श्रीसद्गुरु की महिमा का गान, अथ- चिंतन, मनन व निदिध्यासन से गुरुतत्व का बोध पा सकें एवं परमपूज्य श्री सदगुरुदेव जी की कृपा से लाभान्वित हो सकें, इस हेतु इस ज्ञान की मंत्र क्षमता वाले श्रीसद्गुरु की महिमा का भावपूर्ण वर्णन है। श्री स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि सर्वप्रथम साधकों को भजन, सुमिरन, ध्यान, सेवा, पूजा, दर्शन तथा उनके गुणगान की विधि बताई जाती है, ताकि जो साधक इस भजन, सुमिरन, ध्यान को नियमित करे वह अवश्य ही लाभांवित हो। श्रीसद्गुरु की महिमा के गान को शास्त्रकारों ने मंत्र- जप के समतुल्य माना है। उनका मत है कि श्रीसद्गुरु की महिमा का सदैव गान करने मात्र से ही शिष्य को भक्ति तथा मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है।
दरअसल में यह गुरुमंत्र शिष्य के मन की पवित्रता को बनाए रखता है तथा भजन, सुमिरन, ध्यान का स्मरण कराता है। श्रीसद्गुरु महाराज के बतलाए हुए महामंत्र की शक्ति को ऋषि, मुनि, देवता सदा ही याद करते रहते हैं। यह गुरुमंत्र ही शिष्य को मन एकाग्र करने की विधि बताता रहता है। वास्तव में श्रीसद्गुरु के नाम- मंत्र का भजन- सुमिरन शिष्य की ध्यान शक्ति को जागृत करता रहता है। यह गुरुमंत्र शिष्य को श्रीसद्गुरु के बतलाए नियमों के पालन करने की याद भी कराता रहता है। इस मंत्र के देवता या इष्ट परमात्म- स्वरुप श्रीसद्गुरु महाराज हैं। इस महामंत्र को सदा जपने से भक्ति की शक्ति मिलती रहती है। इस मंत्र के भजने या जपने के लिए व श्रीसद्गुरु की कृपा पाने के लिए साधक को सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए, क्योंकि बिना उनकी कृपा के कुछ भी नहीं हो सकता है।