मिर्जापुर ब्यूरो बांकेलाल निषाद प्रणव
गीता जयंती पर स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज का दुनिया को संदेश
हमारा देश भारत एक धर्म प्राण देश है। इस देश की धरती पर लगभग ५२०० वर्ष पूर्व अवतरित श्रीमद्भागवतगीता ७०० श्लोकों का एक दिव्य ग्रंथ है। यह एक अमूल्य चिंतामणि रत्न साहित्य सागर में अमृत कुंभ और विचारों के उद्यान में कल्पतरु तथा धर्म में सत्यपथ का एक ज्योतिस्तंभ है। इसमें वेद का मर्म उपनिषद का सार महाभारत जैसा ऐतिहासिक ग्रंथ का नवनीत तथा सांख्य का समन्वय है तथा यह एक ऐसा दिव्य फल है जिसको यथावत सेवन करने से मानव जीवन मुक्त हो जाता है यह एक दिव्य संगीत है जिसकी स्वर लहरी से मानव में श्रेष्ठतम गुणों की अभिवृद्धि होती है। यह एक ऐसा अध्यात्मिक शास्त्र है जिसमें मनुष्य नर से नारायण बन सकता है। यह आलौकिक ग्रंथ एक ऐसा तत्व ज्ञान है जिसमें भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व की आत्मा बसती है और आज तक निर्विवाद रहा है। श्रीमद्भागवत गीता आदि धर्म शास्त्र है इसके संदेश को महान दार्शनिक प्लूटो अरस्तू सुकरात संत तबरेज महात्मा जरथुस्त्र बुद्ध महावीर गुरु मच्छंन्दरनाथ गुरु गोरखनाथ भर्तृहरि ईसा मोहम्मद साहब आदि शंकराचार्य संत ज्ञानेश्वर संत कबीर संत तुलसी गुरु नानक संत रैदास मीराबाई चैतन्य महाप्रभु स्वामी विवेकानंद महर्षि अरविन्द तथा हजारों प्रभु भक्तों ने स्वीकार कर सम्मानित किया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन में सबसे अमूल्य धरोहर भगवतगीता ही थी लगभग सभु संप्रदायों के संस्थापक महापुरुषों ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में गीता का ही सत्य दोहराया है कि ईश्वर एक है एक ईश्वर कहना तो आसान है लेकिन प्रारम्भ से पूर्ति पर्यंत सांगोपांग साधना का क्रम जो इस आलौकिक ग्रंथ में है अन्यत्र कहीं नहीं है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा, परमात्मा ही सत्य है आत्मा ही सत्य है, वह कण कण में व्याप्त है। , सत्य की यही प्रतिध्वनि विश्व के सभी ग्रंथों में है जो गीता के ही अनुयाई है। भगवतगीता से ही प्रेरित बसुधैवकुटु़ंबकम की भावना से अनुप्राणित होकर कृण्वन्तो विश्वमार्यम का आदर्श लेकर भारत के ऋषियों ने धर्म का आलोक संपूर्ण विश्व में फैलाया, विश्व भर के लोगों का आवाहन किया श्रृण्वन्तो विश्ये अमृतस्य पुत्रा, अमृत अंश विश्वभर के लोग सुने। वेदाहमेतम पुरुषं महानतम, मैंने उस परम पुरुष परमात्मा को भली-भांति जान लिया है जो आदित्यवर्णा तमसा परस्तात, प्रकाश स्वरूप और तम से परे हैं। तमेव अति तमेव विदित्वा अति मृत्यु मेति, केवल उसी को जानने से मृत्यु से छुटकारा मिल सकता है। नान्यापंथे विद्यते अयनाय, इसके अतरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है इस प्रकार विश्व की समस्त समस्या का समाधान श्री कृष्ण के मुख से प्रसारित श्री मद्भागवत गीता है जो कालजयी कृति है। पूरे विश्व में समस्या बनी है। रक्तरंजित वातावरण, आतंकवाद ऱगभेद नस्लभेद जातिभेद ऊंच-नीच तथा अनेकानेक मुद्दे से विश्व के हर राष्ट्र का नेतृत्व समाधान खोजने के लिए प्रयास कर रहा है लेकिन इन सब का संपूर्ण समाधान केवल श्रीमद्भागवत भाष्य यथार्थ गीता में ही भली प्रकार है। अतः इस संदर्भ में मेरी एक प्रार्थना तथा बहुमूल्य सुझाव है। हमारे पंचांग के अनुसार गीता जयंती दिवस। मार्गशीष शुक्ल एकादशी पर मनाई जाती है। हमारी मान्यता के अनुसार यह दिवस श्रीमद्भागवत गीता का प्रतीकात्मक जन्म दिवस है। इसी दिन महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। अतः विश्व में इस महान ग्रंथ को यथोचित सम्मानित करने के लिए इस दिवस को अंतरराष्ट्रीय गीता दिवस घोषित कराने का प्रयास किया जाय ताकि विश्व जनमानस का ध्यान इसकी उपदेशों पर केंद्रित हो सके ओर संपूर्ण मानव समूह भयंकर त्रासदी से मुक्त हो कर कल्याण का मार्ग पाकर सदैव के लिए कोलाहल मुक्त हो जाय।