अम्बेडकर नगर ब्यूरो बांकेलाल निषाद प्रणव
संतों पर सद्गुरु कृपा सदा बरसती रहती है--- स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज
विश्व गुरु विश्व गौरव से सम्मानित यथार्थ गीता के प्रणेता तत्व द्रष्टा महापुरुष परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज आज अपने शिष्यों पूज्य श्री शशि जी महाराज पूज्य सोहम महाराज जी पूज्य श्री रामू महाराज जी पूज्य श्री राकेश महाराज जी पूज्य श्री लाले महाराज जी व पूज्य श्री चिंतनमयानंद जी महाराज के साथ जैकरकला भाव बाबा के आश्रम पर पहुंचे। वहां पर सैकड़ों की संख्या में भक्तों ने पूज्य श्री स्वामी जी महाराज का स्वागत अभिनन्दन एवं आरती वंदन किया। पूज्य श्री स्वामी जी ने यथार्थ गीता के महात्म्य पर विशेष जोर दिया उन्होंने कहा कि वर्तमान में विश्व में अधिकांश अशांति लड़ाई झगडे़ जो हो रहे हैं वे धार्मिक अज्ञानतावश है। जबकि समय-समय पर धरा धाम पर महापुरुषों का अभ्युदय अवतार धार्मिक अज्ञानता को मिटाने के लिए होते आये हैं और उन महापुरूषों ने उन तमाम धार्मिक मत मतांतरों में से जो पूर्व में बताये हुए महापुरुषों के जो सर्वोत्तम व शास्वत मत है उसी को समाज को देने का काम किया है उदाहरण के रूप में पूज्य श्री स्वामी जी ने बताया कि आज वैश्विक स्तर पर जो धार्मिक भ्रांतियां धर्म के नाम पर अनाचार पाखंड कर्मकांड फैली है उन सबकी काट ईश्वरीय वाणी यथार्थ गीता है यथार्थ गीता की आवृत्ति करने से धर्म संबंधी सारे शंकाओं का समाधान हो जाता है। पूज्य श्री स्वामी जी से भक्तों की आंतरिक इच्छा को पकड़ कर कबीर के *सद्गुरु ज्ञान बदरिया बरसे* पर विस्तार से बताया । पूज्य श्री स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में भक्तों को बताया कि सद्गुरु खेवनहार है बिना उनके कोई भवसागर पार नहीं हो सकता
*पूरा सद्गुरु न मिला मिली न सांची सीख*।
*भेष यती का बनाय के घर घर मांगे भीख।*।
अब प्रश्न उठता है कि सद्गुरु का ज्ञान कहां कहां बरसता है ?
*गंगा में बरसे यमुना में बरसे।ताल तलैया तरसे।।* पूज्य श्री स्वामी जी ने कहा कि अध्यात्मिक प्रतीकों में ज्ञान ही गंगा है और योग ही यमुना है
*गंगा जमुना खूब नहाये । गया न मन का मैल* ।
*आठ पहर जूझत ही बीता जस कोल्हू का बैल।*।
ज्ञान रुपी गंगा और योग रुपी यमुना में अवगाहन करने से पाप सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
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*पांच सखी मिलि तपै रसोई।*
*सुरत सुहागिन परसे*।*।*
पांच सखी अर्थात पांच ज्ञानेंद्रियां जब संयत हो जाती हैं तो सखी हैं तपै रसोई अर्थात भजन ही भोजन है जो इस आत्मा को तृप्त करता है, आत्मा को परिपूर्ण और द्रष्टा को स्वरुप में स्थिति दिलाता है
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*सुरत सुहागिन परसे।*
*साधु संत जन निशि दिन भीजै।।* *निगुरा बूंद भर तरसे।*।
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*बिरले शब्द को परखे।*।
संतों के लिए सद्गुरु का बादल अनवरत अविरल बरसता रहता है। उठते बैठते सोते जागते हमेशा सद्गुरु की कृपा व वरदहस्त परमात्म पथिक पर बरसती रहती है। महात्मा कबीर कहते हैं कि मैं जो ज्ञान प्रस्तुत कर रहा हूं उसको कोई विरला ही समझेगा और कोई विरला ही उस पर चलेगा।
पूज्य श्री स्वामी जी ने भक्तों को को बताया कि यथार्थ गीता को पढ़ें और ओम् का जप करें जिससे लौकिक और पारलौकिक जीवन सफल बन सके।