हृदयस्थ ईश्वर की उपासना का प्रतीक है रक्षा बंधन -- स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज
अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश
ब्यूरो बांके लाल निषाद
विश्व गुरु विश्व गौरव से सम्मानित समय के महापुरुष कालजयी यथार्थ गीता के प्रणेता तत्व द्रष्टा महापुरुष अनन्त विभूषित परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज ने रक्षाबंधन पर्व के बारे में अपने भक्तों को विस्तृत जानकारी दी। श्री स्वामी जी ने चित्तौड़ की महारानी और मुगल शासक हुमायूं की राखी कथानकों का जिक्र किया और भगवान श्री कृष्ण और बहन द्रोपदी का भी जिक्र करते हुए रक्षा बंधन पर्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। श्री स्वामी जी ने कहा कि भाई बहन का यह पवित्र रिश्ता एक पवित्र प्रेम का बंधन है जिसमें भाई अपना सारा नुकसान करके बहन की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि रक्षा बंधन एक हृदयस्थ ईश्वर की उपासना का प्रतीक। श्री स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भाई और बहनों का यह पर्व बहुत ही पुरातन परंपरा है हमारे भारतीय संस्कृति में जितने भी त्योहार है बताये गये हैं या बनाये गये हैं उसका एक अध्यात्मिक स्वरूप होता है इतिहास कायम रहे ?उससे हम जीवन में क्या पा सकें? उससे आत्मा के आधिपत्य में चलने के लिए क्या विशेष आवश्यक पड़ती है? साधन भजन के पहलुओं के लिए है महापुरुषों के जो इतिहास बना है या उनके नाम से जो नामांतरण हुआ है उसके आधार पर जो भी एक्टिविटी हुई है प्रतिक्रियाए हुई हैं वो साधना के लिए प्रेरणा दायक होता है। अब वही चीज को जानने के लिए सत्संग और महापुरुषों के सानिध्य की जरूरत होती है
जीव माया में फंसा है चौरासी लाख योनियों में भटका हुआ है जीव बंधनों में बंधा हुआ है । जो पूर्ण है वहीं रक्षा कर सकता है वृत्ति ही बहन है भाव ही भाई है वृत्ति ही भाव को अपने में बहा ले जाती है इसीलिए सूपर्णखा रावण कर भगिनी कहा जाता है वृत्ति रुपी बहन ने मोह रुपी रावण को अपनी वृत्ति में बहा ले जाती है। महाराज बलि का प्रकरण आता है समर्पण ही बलि है बलि को विष्णु ने अपने वामन रूप में उसके सारे साम्राज्य को अपने दो पैरों से ही नाप लिया और लास्ट में बलि ने अपने साढ़े तीन हाथ के शरीर को भी देने को तैयार हो गया। विष्णु भगवान ने अपना एक पैर से उसका सर भी नाप लिया चल अचल सारी संपत्ति भगवान ने ले लिया । बलि अपने आप को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया भगवान के प्रति हो गया भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और बोले कि वर मांगो बलि ने उनसे अपने महल के चौदहों दरवाजे पर दर्शन के लिए वर मांगा विष्णु भगवान बलि के चौदहों दरवाजे पर पहरा देने लगे सर्वत्र उनका वास हो गया योग क्षेम की सारी जिम्मेदारी भगवान ने खुद ले ली जहां देखो तहां बलि के चारों तरफ भगवान नजर आने लगे। चौबीस घंटे ड्यूटी लगी रही चौदह दरवाजे का मतलब पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियां और चार चतुष्टय अंतःकरण मन बुद्धि चित्त और अहंकार हर जगह सर्वत्र भगवान का वास हो गया चौदहों जगह पर सर्वत्र भगवान का वास हो गया सब ओर भगवान ही भगवान नजर आने लगे बाद में जब लक्ष्मी को पता चला तो वह भी दौड़ी आयी कुछ दिन रही फिर रक्षाबंधन का दिन आया उसी दिन लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधी बलि ने कहा कि बहन जो मांगना हो मांग ले लक्ष्मी ने कहा कि जो चौकीदार वाचमैन है उसी को दे दो लक्ष्मी भगवान को लेकर चली आयी। श्री स्वामी जी ने कहा कि वास्तव में लक्ष्य विदित होना ही लक्ष्मी है जिस परमात्मा के लिए साधक भजन चिंतन साधना सद्गुरु की सेवा करता है अब उस साधन की जरूरत नहीं है वह भगवान में और भगवान उसमें है। परमात्मा की प्राप्ति के बाद महापुरुष के लिए कोई कर्तव्य शेष नहीं रहता वह संसार के अणु अणु में व्याप्त है। श्री स्वामी जी ने कहा कि सद्गुरु के निर्देशन में साधक जब पूर्णत्व की प्राप्ति कर लेता है तो उसकी स्थिति परमात्मा के समकक्ष हो जाता है ।इस अवसर पर पूज्य तानसेन महाराज पूज्य सोहम महाराज पूज्य लाले महाराज पूज्य रामजी महाराज पूज्य पप्पू महाराज आदि दर्जनों संत है उपस्थित रहे और मशहूर विरहा गायक विजयी प्यारेलाल अपनी टीम के साथ श्री स्वामी जी को भजन सुनाया ।।