अम्बेडकर नगर ब्यूरो बांकेलाल निषाद "प्रणव"
ब्रम्हभोज पर यथार्थ गीता पाठ आयोजन/ प्रवचन
विश्व गुरु विश्व गौरव से सम्मानित ईश्वरीय निर्देशन में समय के महापुरुष परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज द्वारा रचित यथार्थ गीता का आयोजन लखनीपट्टी स्थित ग्राम पंचायत अधिकारी राजित राम यादव के घर पर संपन्न हुआ। जिससे उनके चाचा (काका) की आत्मा को शान्ति मिल सके । इस अवसर पर यथार्थ गीता पाठ आयोजन के साथ साथ भंडारे का भु आयोजन किया गया जिसमें सैकड़ों भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस शुभ अवसर पर पूज्य श्री स्वामी जी के शिष्यों में एक सूर्यानंद (सूरज महराज) जी महाराज का भी पदार्पण हुआ और उन्होंने पूज्य श्री स्वामी जी की विद्या को सैकड़ों भक्तों में बताया। उन्होंने ओम् का जप एक ईश्वर की आराधना सद्गुरु का ध्यान व उनकी सेवा यज्ञ कर्म धर्म आदि पर विस्तृत चर्चा की। आज कल सनातन शब्द पर चर्चा करते हुए उन्होंने भक्तों को बताया कि सनातन शब्द का अर्थ है शास्वत जो अमिट है वही शास्वत है उन्होंने बताया कि आत्मा ही सनातन है शास्वत है जिसका कभी विनाश नहीं होता है। आत्मा अजर-अमर है यह आत्मा सर्वव्यापक अचल स्थिर रहने वाला सनातन है आत्मा ही सत्य है *अच्छेद्योअ्यमदाह्योअ्यमक्लेद्योअ्शोष्य एव च।*
*नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोअ्यं सनातन।।*
महराज जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि यह आत्मा अच्छेद्य है इसे छेदा नहीं जा सकता यह अदाह्य है इसे जलाया नहीं जा सकता यह अक्लेद्य है इसे गीला नहीं किया जा सकता आकाश इसे अपने में समाहित नहीं कर सकता । महराज जी ने बताया कि जो गीतोक्त धर्माचरण करता है वही सनातनधर्मी और हिन्दू है। हृदय स्थित जो भगवान का भजन करे वही हिंदू है। कर्म की व्याख्या करते हुए उन्होंने भक्तों को बताया कि कर्म एक अराधना विधि विशेष का नाम है जैसे श्वास का प्रश्वास में हवन प्रश्वास का श्वास में हवन श्वास प्रश्वास का निरोध कर प्रणायाम के परायण होना इत्यादि यज्ञ जिस आचरण से पूर्ण होता है उस आचरण का नाम यज्ञ है
एवं वहुविधा यज्ञा वितता ब्रम्हणो मूखे।
कर्मजान्ध्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे।।
वाह्य यज्ञों का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि भजन श्वास से किया जाता है। इसमें दैवीय संपद का अर्जन किया जाता है संपूर्ण इंद्रियों के व्यापार को मन की चेष्टाओं को ज्ञान से प्रकाशित हुई आत्मा में संयमरुपी योगाग्नि में हवन करते हैं। इसी प्रकार धर्म संबंधी समाज में प्रचलित अनगिनत रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए गीतोक्त वर्णित साधना पर उन्होंने बल दिया। ओम का जप सद्गुरु का ध्यान यथार्थ गीता को पढ़ने पर उन्होंने बल दिया ।