साहिया 13 दिसम्बर
जौनसार बाबर जनजातीय क्षेत्र के कई गांवों में पारम्परिक रिति-रिवाज के साथ मनाई जाने वाली बूढ़ी दीपावली आज (भीरूडी) बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस दौरान महिलाओं ने हारुल, दांदी, जेंन्ता, रासो नृत्य किया, तो पुरूषों ने बौरों मेना गीत गाए। बडी दिवाली के दिन मशाल (होला)जलाकर अपने आराध्य देव चार माहसू को समर्पित किये। और भिरूडी का आनंद लिया।
जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में जौनसारी दिवाली की अपनी अलग ही पंहचान है। जो देश में मनाई जाने वाली दीपावली के टीक एक माह बाद मनाई जाती है। जिसमें जौनसार बाबर जनजातीय क्षेत्र की पुरानी परंपरागत संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है। वुधवार की सुबह 6 बजे भीमल की लकड़ियों से बना होला गांव से कुछ दुरी पर जाकर जलाया।जिसको होलियात कहा जाता है। इससे पूर्व पूरी रात पंचायत आंगन में प्रत्येक गांव में नाच गाने के कार्यक्रम हुए। सुबह होला जलाने के पश्चात ग्रामीण पंचायत आंगन में पहुंच कर अपने अपने इष्ट देवी देवताओं की आराधना कर सुख शांति एवं
समृद्धि, एवं अन-धन की कामना की। उसके बाद पंचायाती आंगन में महिलाओं एवं पुरुषों ने सामूहिक हारूल नृत्य किया। मोड़ें रे मोडाईऐ केली मोडाऐ, हुण्डी दे ढाकिया सुने री हरियाली, बिजोरी बिणिदों जांणों ली बिजोरिऐ,चारो गायणें माहसु देवा - चारिऐ भाई गीतों के साथ पुरे दिन जौनसारी दिवाली की धुम छाई रही। उसके बाद गांव के प्रत्येक परिवारों द्वारा एकत्रित किये गये अख़रोट भीरूडी के रूप में फेंकी गई।भीरूडी फेंकने के बाद बोंरों बैना जाऐ भिरोसु बोरों बैना देव आराध्य गीत गाया। उदपाल्टा गांव के स्याणा राजेंद्र सिंह राय, फटेऊ गांव के चतर सिंह चौहान, पानुवा गांव के रूपराम राठौर,अलसी गांव के स्याणा टीकम सिंह बिष्ट, सकनी गांव के स्याणा नेन सिंह पंवार आदि बुजुर्गों का कहना है कि जौनसारी दिवाली क्षेत्र का एक मुख्य त्योहारों में से एक है। जिसमें आपसी भाईचारे व पुरानी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस त्यौहार को पांच दिनों तक मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि बडी दिवाली के दिन अपने अपने इष्ट देवी देवताओं की भी पूजा अर्चना की जाती है।जिसका पूरी साल इंतजार रहता है।