कालसी व अमबाडी में बल्ती समुदाय के लोगों ने मोहर्रम का निकाला मातमी जुलूस
संवाददाता गजमफर अली
कालसी
जुल्म के खिलाफ इंसानियत का प्रतीक मोहर्रम के अवसर पर शिया समुदाय के लोगों ने कालसी व अंबाडी में ताजिया जुलूस निकालाकर मनाया गया ।मोहर्रम के अवसर पर खून बहाने के बजाय शिया समुदाय के लोगों ने अंबाडी मैं रक्तदान शिविर आयोजित कर ब्लड बैंक आईएम देहरादून रक्त दीया।
आपको बता दें कि मोहर्रम का महीना शिया मुसलमानों के लिए यह महीना बेहद गम भरा होता है जब भी मोहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है आज से लगभग 14 सौ साल पहले तारीख ए इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी यह जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी इस जग में पैगंबर मोहम्मद के नवाजे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे इसलिए मान्यता है कि कर्बला के बाद इस्लाम जिंदा होता है। शनिवार को
कालसी में बल्ती समुदाय के लोगों ने मोहर्रम के अवसर पर कालसी स्थित खान बस्ती में मातम मनाया गया सबसे पहले कालसी स्थित इमामबाड़े में लोग एकत्रित हुए,मौलाना इरफान हैदर ने लोगों को मजलिस पढ़ाई गई उसके बाद इमाम हुसैन की याद में मातम मना कर खून बहाया गया इसके बाद इमामबाड़े से खान बस्ती के रास्ते होते कत्ल गाहा तक ताजिया निकाला गया उसके बाद ताजिया दफनाया गया। इस दौरान मातम करते साथ में यह भी बोल रहे थे या हुसैन हम ना हुए, यह कहते हुए लोग मातम करते हैं की कर्बला की जंग में इमाम हुसैन हम आपके साथ नहीं थे वरना हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे देते हैं। कहते हैं, इस ताजिए को कर्बला की जंग के शहीदों का प्रतीक माना जाता है। मातम के दिन सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं जुलूस में पूर्वजों की कुर्बानी की कहानियां
सुनाई जाती है ताकि आज की पीढ़ी इसके महत्व को समय सकें और उन्हें जीवन के मूल्य का पता चले। इस मौके पर एडवोकेट सफदर अली खान, संजय खान मुख्तार अहमद ,मामू खान, , शेरखान, करार हसन, मुराद हसन, मकबूल अली, मेहंदी हुसैन नईम हैदर, नेखोज जीएम खान, आदि लोग उपस्थित रहे
कालसी में बल्ती समुदाय के लोगों ने मोहर्रम के अवसर पर कालसी स्थित खान बस्ती में मातम मनाया गया सबसे पहले कालसी स्थित इमामबाड़े में लोग एकत्रित हुए,मौलाना इरफान हैदर ने लोगों को मजलिस पढ़ाई गई उसके बाद इमाम हुसैन की याद में मातम मना कर खून बहाया गया इसके बाद इमामबाड़े से खान बस्ती के रास्ते होते कत्ल गाहा तक ताजिया निकाला गया उसके बाद ताजिया दफनाया गया। इस दौरान मातम करते साथ में यह भी बोल रहे थे या हुसैन हम ना हुए, यह कहते हुए लोग मातम करते हैं की कर्बला की जंग में इमाम हुसैन हम आपके साथ नहीं थे वरना हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे देते हैं। कहते हैं, इस ताजिए को कर्बला की जंग के शहीदों का प्रतीक माना जाता है। मातम के दिन सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं जुलूस में पूर्वजों की कुर्बानी की कहानियां
सुनाई जाती है ताकि आज की पीढ़ी इसके महत्व को समय सकें और उन्हें जीवन के मूल्य का पता चले। इस मौके पर एडवोकेट सफदर अली खान, संजय खान मुख्तार अहमद ,मामू खान, , शेरखान, करार हसन, मुराद हसन, मकबूल अली, मेहंदी हुसैन नईम हैदर, नेखोज जीएम खान, आदि लोग उपस्थित रहे
वहीं दूसरी ओर ग्राम अंबाडी में शिया समुदाय के लोगों द्वारा मातम मनाया गया वह ताजिया जुलूस निकाला गया। सिया समुदाय के लोगों ने खून बेकार बहाने की जगह किसी के जीवन बचाने के लिए रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें कई लोगों ने ब्लड आई एम ए ब्लड बैंक की टीम को दान किया। अंबाडी स्थित इमामबाड़ा मैं लोग एकत्रित हुए वह मोहर्रम का मातम मनाया अंबाडी स्थित इमामबाड़े से जाफरी मोहल्ला तक ताजिया जुलूस निकाला गया व वहां पर दफनाया गया। सिया समुदाय के लोगों को मौलाना कमाल हैदर ने मजलिस पढ़ाई इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता व गौ सेवक जमाल खान, फिरोज खान नवाब अली मेहदी अली शाह हैदर अली गुलशन हैदर खान, आदि लोग उपस्थित रहे
शिया समुदाय में मोहर्रम का महीना इमामे हुसैन की याद में गम का महीना माना जाता है पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए शिया समुदाय के लोग मोहर्रम पर गमे मातम मनाते हैं मोहर्रम महीने का दसवे दिन सबसे खास माना जाता है इतिहास में ऐसा बताया गया है कि मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख को कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी मोहर्रम के दिन शिया समुदाय के लोग
ताजिया निकालकर मातम मनाते हैं दरअसल जिस स्थान पर इमाम हुसैन का मकबरा बना है उसी आकार के रूप में ताजिया बनाकर जुलूस निकाला जाता है इस जुलूस में बल्ती समुदाय कालसी के लोग पूरे रास्ते पर मातम करते हैं और साथ में यह भी बोलते हैं या हुसैन हम ना हुए यह कहते हुए लोग मातम करते हैं की कर्बला की जंग में इमाम हुसैन हम आपके साथ नहीं थे वरना हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे देते कहते हैं इन ताजियों को कर्बला की जंग के शहीदों का प्रतीक माना जाता है इस जुलूस का आरंभ कालसी इमामबाड़ा से होता है और समापन कातिगा कालसी मैं होता है और सभी ताजिया वहां दफन कर दिया जाते हैं मातम के दिन सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं जुलूस में पूर्वजों की कुर्बानी की कहानियां सुनाई जाती है ताकि आज की पीढ़ी इसके महत्व को समझ सके और उन्हें जीवन के मूल्य का पता चले
ताजिया निकालकर मातम मनाते हैं दरअसल जिस स्थान पर इमाम हुसैन का मकबरा बना है उसी आकार के रूप में ताजिया बनाकर जुलूस निकाला जाता है इस जुलूस में बल्ती समुदाय कालसी के लोग पूरे रास्ते पर मातम करते हैं और साथ में यह भी बोलते हैं या हुसैन हम ना हुए यह कहते हुए लोग मातम करते हैं की कर्बला की जंग में इमाम हुसैन हम आपके साथ नहीं थे वरना हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे देते कहते हैं इन ताजियों को कर्बला की जंग के शहीदों का प्रतीक माना जाता है इस जुलूस का आरंभ कालसी इमामबाड़ा से होता है और समापन कातिगा कालसी मैं होता है और सभी ताजिया वहां दफन कर दिया जाते हैं मातम के दिन सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं जुलूस में पूर्वजों की कुर्बानी की कहानियां सुनाई जाती है ताकि आज की पीढ़ी इसके महत्व को समझ सके और उन्हें जीवन के मूल्य का पता चले